लो फिर से आया हमारा लोकतन्त्रिक त्यौहार
युं तो भारत में हर त्यौहार बड़े ही उत्साह और उल्लासपूर्वक मनाया जाता है । पर भारत कि वर्त्तमान वास्तविकता का दर्पण है चुनाव का त्यौहार- भारतीय लोकतंत्र कि वह उन्नत परम्परा जो सामान्यता हर पांच साल बाद लोगो के लिए एक सुनहरा अवसर लेकर प्रस्तुत होती है । इस त्यौहार का सभी भारतवासी बेसबरी से इंतज़ार करते हैं क्योकि यही वह पर्व है जिस पर संसद और विधानसभा में बसने वाले सत्ताधारी लोकतान्त्रिक देवगण अपने शक्ति और पद के कवच को छोड़ आम लोगो के मध्य उनके दुआर तक पहुंच जाते हैं ।
यही वह पल होते हैं जो संविधान में लिखे “हम भारत के लोग….”की सुनहरी विचारधारा को चाहे कुछ गिने चुने क्षणो के लिए ही सही पुनः जीवित कर देते हैं । हैं भारतीय नागरिक इसकी जनता को देश के मालिक माई-बाप होने कि झूठी पर खुशमिजाज खुशफहमी का आनन्द देते हैं ।
जिस तरह प्राथना कि वजह अपनी अपनी होती है उसी प्रकार यह चुनावो का त्यौहार सभी भारतवासियो को विभिन्न वजहों से प्रिय है ।किसी के लिए यह मौका है सत्ता के गलियारों में जाने का ।किसी
के लिए यह अवसर है विरोधियो को नीचे गिराने का । अधिकतर लोगो के लिए तो यह त्यौहार मानो खुशियो का खज़ाना लेकर आता है जिसमे उनकी वोट रुपी ब्रह्मशक्ति पाने के लिए उन्हें नोटों, दारु और न जाने क्या क्या भेटो से सरोबार कर दिया जाता है ।
युं तो हर वर्ग और हर तबके के लोग इस त्यौहार का जी भर कर आनंद लेते हैं पर समाज के आमजन के लिए तो मानो यह कल्प बृक्ष का काम करता है । जी भर के दारु, रात भर मस्ती और पार्टी, हो भी क्यों न आखिर पांच वर्ष बाद वह समय आता है जब वह नेताओं की तिजोरियो को खूब खाली करवा सकते हैं पर बेचारे प्राणी ये समझने में असमर्थ रहते हैं कि जितनी तिजोरिया इस समय खाली हुई हैं उस से कहीं ज्यादा वापिस उन्ही कि जेबो से भरा जायेगा ।
समाज के साधन संपन्न वर्ग के लिए यह त्यौहार बहुत ही खर्चीला सिद्ध होता है क्यों जो वो अपने भविष्य को मंगलमय और सुख्दायक करने के हिसाब से सत्ताधारी बंधूयों
के लिए अपनी तिजोरिया खाली करते हैं ताकि चुनाव के बाद पुन ५ वर्ष के लिए उन के कार्य क्षेत्र में कोई बाधा ना आये ।
पर उपरोक्त कथन से यह समझ लेना सर्वथा अनुचित होगा कि चुनावो का ये त्यौहार केवल वित् पर केंद्रित है इस त्यौहार के कई सामजिक और सांस्कृतिक पहलु भी हैं । आज कि इस भागती दौड़ती ज़िंदगी में जिसमे व्यक्ति को खुद की होश नही रहती चुनाव का त्यौहार उसे यकायक उसकी जाfत उसके धर्म कि याद दिला देता है । उसके अंदर अपने जाfत भाई जिसे उसने गत ५ वर्षो से स्मरण भी न किया हो, उसके लिए अथाह प्रेम का सागर उमड़ पड़ता है । वो भुल जाते हैं कि उनकी इसी जाति, धर्म पर वोट बैंक की पालीटीकस करने वाले लोग उनका विकास करवाकर अपनी सता को खतरे
में क्यों ड़ालेंगें?
जाती, धर्म, कुटुंब, कबीला, क्षेत्र और भाषा जैसे अटूट बंधन जो रोज़मर्रा के जीवन में पीछे छूट जातें हैं वह पुरज़ोर शक्ति के साथ इस चुनावी त्यौहार पर अपने अस्तितिव और शक्ति का एहसास करवाते हैं ।
यही नही इस त्यौहार का सांस्कृतिक पहलु भी है । ये दिन भारत के सब से जागरूक और शिक्षित वर्ग मध्यम वर्ग के लिए एक सरकारी अवकाश ले कर आता है ताकि वो लोग चाय कि चुस्कियोँ के साथ फिर से दोहराते रहे कि इस देश का कुछ नही हो सकता ये तो डर्टी पॉलिटिक्स है
सब
के सब भ्रष्ट हैं वगैरा-वगैरा ।
लेकिन इन सब बातों में वो सब से महतवपूर्ण बात भूल जातें हैं कि ये देश और समाज आखिर कौन बनाता है?आखिर ये सिस्टम भी तो हम से ही है!अगर हम नही बदलेंगे तो यह सिस्टम कैसे बदलेग?इस तरह हम एक “मसीहा”का इंतज़ार करते रहते हैं जो आ कर हमारी सारी समस्याओं को अपनी जादू कि छड़ी से दूर कर देगा हम क्यों भूल जातें हैं कि जब समस्याएं हमारी हैं तो हल भी हमे ही करनी हैं! हमें अपना क्रिश खुद बनना है ।
यह सब मजाक नहीं है मजाक तो ह्मारे लोकतंत्र का बन गया है। जब
कोई अपनी माँग लेकर खडा होता है उसे एक रेवड़ी
पकड़ा दी जाती है । कभी मोबाइल कभी लैपटॉप । सवाल यह उठता है कि हम कब तक रेवड़ियों
के चलते असली मुद्दों को नज़रअंदाज़ करते रहेंगे? क्या होगा जब रेवड़ियां ख़तम हो जायेगी? इसलिए मैं इस देश के प्राणधार सर्व्श्रेस्थ
जनता से निवेदन करती हु कि समय आ गया है कि जब हम इस चुनावों के त्योहार कि खंडित मर्यादा
को पुनः संजोये । अपने अमूलय वोट का सही रूप से सही मायनो में देश हित और लोकतंत्र
कि रक्षा हेतु उपयोपग करे । अगर हम अपना दायित्व सही से ना निभा पाये तो चुपचाप इस
चुनावी त्यौहार में लोकतंत्र का निशुल्क तमाशा देखे क्योंकि अगर हम अपना देश लुटाते
रहेंगे तो लूटने वालों कि यहाँ पे कोई भी कमी
नहीं है । इसलिए पहले खुद पे लगे दागों को साफ़ कीजिये वर्ना कहते रहिये कि दाग अच्छे है । हम लोग जब जाग जायेंगे देश के विकास को नेताओं के
भाषणो या आंकड़ों से नहीं बल्कि दिल से महसूस
करेंगे तभी भारत को लोकतंत्र भी इसकी जनता के साथ साथ चुनावों के त्यौहार का लुत्फ
उठा पायेगा । इसी आशा के साथ आप सबको मुबारक लोकतंत्र का यह त्यौहार…. चुनाव ॥
Much awaited and very well written dear...v have the power to change bt initiation n awareness is much needed..most of the times v criticise our political system but very less number of people dare to change it..I hope dis blog will motivate people to vote(our right)...kudos to u...
ReplyDeleteThank you so much Shweta! You always motivate me. Thanks for being so nice to read and share my every writing :)
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ReplyDeleteVery aptly summerised the political process and progress in India Daisy !!
ReplyDeleteI congratulate you for the same.
A compliment from you is always a matter to celebrate! Thank you Sir :)
DeleteAptly summerised the inapt situation of Indian Political System, its process and its progress !! Great Daisy !!
ReplyDeleteSuperbly summarised! Great job...keep it up! !
ReplyDeleteThanks Vishal for the support & motivation :)
DeleteBahut badiya
ReplyDeleteThanks :)
DeleteBahut badiya
ReplyDeleteVery well written.. I liked it a lot.. but for the sake of constructive criticism I'll write some things.
ReplyDelete1. The article is an appeal / awareness. To the Indian voters but it does not put the context in a new or any fresh way. I mean. It cliched way to put it, you could hav experimented something new.
Thanks Hitesh! Constructive criticism is always welcomed. i think you wanted to mention some more points as shown by serial no. 1. please go ahead and feel free to put up your views. It will really help me. Next time, for sure, I will take care of your suggestion :)
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